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17 Aug
विकलांगता पर भारी पड़ा सुकवारा के मजबूत हौसलों की मानसिकता
- Sourabh
विकलांगता पर भारी पड़ा सुकवारा के मजबूत हौसलों की मानसिकता
- 1 रुपये कमाई का संघर्ष नित्य 1 हजार रुपये तक पहुंचा
सक्ति, 21 जुलाई 2023। कहा जाता है कि जब हौसलों की मानसिकता परिवर्तन के लिए करवट लेती है तो पुरानी व्यवस्था स्वतः बदल जाती है। जी हाँ ! इसे छत्तीसगढ़ प्रान्त के सुदूर जिले के सक्ति जिले के डभरा ब्लॉक के सकराली गांव की रहनेवाली दिव्यांगजन कु. सुकवारा श्रीवास ने चरितार्थ कर दिखाया है।
लगभग 5 वर्ष पूर्व कु. सुकवारा श्रीवास का जीवन कष्टमय बीत रहा था। एक तरफ विकलांगता और दूसरी तरफ गरीबी नित्य घर के दरवाजे पर बैठकर कोसती रहती थी। उस गांव के लोगों का न ही उसकी तरफ मदद को हाथ आगे आता न ही कोई सरकार का कोई तंत्र उस तक पहुँच पाता। दिन बीतते जा रहे थे परन्तु बढ़ते दिन के साथ उसके जीवन यापन की डगमगाती नैया के सुराख़ भी बढ़ते जा रहे थें।
दिव्यांगजनों के प्रति उस गांव के समाज में उपेक्षा का भाव उसे अँधेरे कमरे में ही दुबकने को मजबूर कर दिया था। सुकवारा को कभी - कभी लगता कि उसका 12 वीं पढ़ना भी किसी काम का नहीं है और वह नित्य हतोत्साहित होती रहती थी।
इसी बीच निदान शिक्षण एवं शोध संस्थान के "चहारदीवारी से समुदाय में भागीदारी" कार्यक्रम अँधेरे में प्रकाश बनकर आया। संस्था द्वारा वर्ष 2019 में उस गांव में संस्थान द्वारा दिव्यांगजनों में जनजागरूकता लाने ,संगठित करने हेतु डी पीओ गठन करना, स्व-सहायता समूह निर्माण, उनकी पंचायत विकास में भागीदारी बढ़ाने, शासकीय योजनाओं से लाभान्वित करने, दिव्यांग कानून व योजनाओं के बारे में जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया। गांव के लोगों के कहने पर वह इस कार्यक्रम में अनमने मन से शामिल हुई।
सर्वप्रथम सर्वे करके उसे विकलांगता का 80 प्रतिशत का प्रमाणपत्र दिया गया। यहाँ उसे विकलांगता के विभिन योजनाओं की जानकारी मिली। परन्तु उसकी चुनौती गरीबी थी। उसने यह निर्णय लिया कि आजीविका से जुड़े गतिविधि से जुड़े ताकि उसका धनोपार्जन हो सके। यह वह दौर था जब उसने प्राप्त जागरूकता को इच्छा में बदला और उचित जानकारी लेकर निरंतर आजीविका की योजनाओं की जानकारी इकठ्ठा की। अपनी शारीरिक अवस्था को देखते हुए उसने तय किया कि वह बैठकर सिलाई का कार्य करे तो उसके लिए उपयुक्त होगा। उसने सस्था द्वारा चालित 3 माह का सिलाई प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण पश्चात उसे एक सिलाई मशीन दी गयी। उसे गांव की अन्य महिलाओं ने सहयोग देना प्रारम्भ किया। वह अक्सर किसी का सहारा लेकर सिलाई का सामन खरीदने जाती थी, इसे देखकर ग्रामोनों की मदद से उस ट्राई साइकिल मिली, जिससे वह ऊर्जा से भरकर अतिरिक्त मेहनत करने लगी।
समय बीतता गया और उसने अपने पिछले दिन को मुड़कर नहीं देखा। बीतते समय के साथ अब वह 500-1000 रुपये प्रतिदिन कमा लेती है। उसके मकान की जर्जर स्थिति ठीक हो गयी, उसकी जीवन शैली में गुणात्मक बदलाव आया है। प्रत्येक सवाल के उत्तर में दिखती गंभीरता और चेहरे की मुस्कान उसके उच्च मनोबल को बताता है।
अलायंस के कंटेंट राइटर और प्रोग्राम मैनेजर निखिल सिंह के एक सवाल के जवाब में कु. सुकवारा श्रीवास कहती है कि दिव्यांगजन के लिए बनायीं गई रोजगार योजना की तथ्यपूर्ण जानकारी ने मेरे अंदर हौसला बढ़ाया, जिसे मैंने टूटने नहीं दिया। मैं निदान शिक्षण एवं शोध संस्थान की शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने न सिर्फ योजनाओं के कार्यन्वयन की जानकारी दी बल्कि मेरे मनोबल को टूटने नहीं दिया। उसने भविष्य की योजना के सवाल पर चर्चा करते हुए कहा कि मेरा लक्ष्य इसे स्थायी करने के लिए कंप्यूटर से चालित सिलाई मशीन से बेहतर कपडे का निर्माण करके शहर के प्रतिस्पर्धा में शामिल होना है।
अब कु. सुकवारा श्रीवास के जीवन में आया यह बदलाव उन सभी दिव्यांगजन के लिए मिशाल बन गया है, जो स्वयं में कुंठित होकर अपने उज्जवल भविष्य को कुंठित कर रहे हैं। सुकवारा के चहरे पर आई यह ख़ुशी बदलाव और हौसले की ख़ुशी है।
